मोड़ चलें हम समय की धारा
आज दिनांक ३.२.२४ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति:-
मोड़ चलें हम समय की धारा :
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मानव तन है दिया ईश ने नहिं कोई काम असंभव है,
चांद तक पहुंच गया है मानव, महनत से सब संभव है।
हस्त रेखा पर विश्वास करें जो वह तो आलसी कहलाता,
कर्मठ बन पुरुषार्थ करे जो मंज़िल अपनी पा जाता।
समय को सभी बलवान हैं कहते नहिं इसमें कोई संशय है,
बांट रहा जो धन लाखों में कल उसके हाथ में नहिं कुछ है।
परन्तु ऐंसी सोचों से भी मानव मन कभी नहीं हारा,
आज नहीं तो कल मोड़ सकेगा वह निष्ठुर समय की धारा।
आवश्यकता है मानवगण को मिलकर प्रयत्न करना होगा,
कठिन होगा पर नहीं असंभव यही भाव रखना होगा।
कोलम्बस ने एक छोटी सी नौका से अमेरिका खोज लिया,
कितनी बाधाएं झेलीं उसने नहिं अपने प्रण का परित्याग किया।
सुनते हैं हम कर्मठ मन के ईश्वर सहायक होते हैं,
बहुत परीक्षा लेते हैं पर मंज़िल तक पहुंचा देते हैं।
ईश्वर ने तो मानव को हैं सभी सुविधाएं दे डालीं,
बुद्धि ,साहस और राॅकेट आदि बना सकने की क्षमता दे डाली।
समय की धारा बदलेंगे हम इसमें अब संदेह नहीं,
निश्चित ध्येय हो अकथ परिश्रृम कोई सितारा दूर नहीं
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Sushi saxena
14-Feb-2024 05:42 PM
Very nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
04-Feb-2024 07:47 AM
बेहतरीन और संदेश देती हुई अभिव्यक्ति
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Gunjan Kamal
03-Feb-2024 09:03 PM
👏👌
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